नवरात्रि हिन्दू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पावन पर्व है, जो माँ दुर्गा के नौ रूपों की आराधना के लिए जाना जाता है। नवरात्रि के प्रत्येक दिन देवी दुर्गा के एक अलग स्वरूप की पूजा होती है, जिनका अपना विशेष महत्व और आशीर्वाद होता है। नवरात्रि के पांचवे दिन की पूजा देवी स्कंदमाता की आराधना के लिए समर्पित होती है। 2024 में नवरात्रि का पंचम दिन विशेष रूप से 10 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस दिन की पूजा विधि, विशेषता, और आध्यात्मिक महत्ता को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह दिन साधकों के लिए विशेष फलदायी माना जाता है। इस लेख में, हम विस्तार से जानेंगे कि नवरात्रि के पांचवे दिन का महत्व क्या है और कैसे इस दिन की पूजा साधकों के लिए एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक अनुभव बनाती है।
देवी स्कंदमाता का स्वरूप
नवरात्रि के पांचवे दिन की पूजा देवी स्कंदमाता की होती है। देवी स्कंदमाता, भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की माता हैं, जो अपने भक्तों को परिपूर्णता, शक्ति, और शांति का आशीर्वाद देती हैं। स्कंदमाता का नाम उनके पुत्र स्कंद (कार्तिकेय) के नाम से ही रखा गया है। वे चार भुजाओं वाली देवी हैं और उनके एक हाथ में स्कंद (कार्तिकेय) बाल रूप में विराजमान होते हैं। उनके अन्य तीन हाथों में कमल के पुष्प और आशीर्वाद मुद्रा होती है, जो उनके सौम्य और शांतिपूर्ण स्वरूप को दर्शाती है। वे सिंह पर विराजमान होती हैं और उनका वाहन सिंह है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है।
देवी स्कंदमाता को माता के रूप में पूजा जाता है और वे अपने भक्तों की मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं। वे ज्ञान, शक्ति, और प्रेम की देवी मानी जाती हैं और उनकी पूजा करने से भक्तों को आध्यात्मिक और मानसिक शांति मिलती है। विशेष रूप से, जो भक्त जीवन में संघर्ष और कष्ट का सामना कर रहे होते हैं, उन्हें देवी स्कंदमाता की आराधना से विशेष लाभ मिलता है।
देवी स्कंदमाता का प्रतीकात्मक महत्त्व
स्कंदमाता की पूजा का अर्थ केवल उनकी शक्ति और अनुकंपा की आराधना करना ही नहीं है, बल्कि यह साधक को आत्म-साक्षात्कार और भीतर की शक्ति को पहचानने के लिए प्रेरित करती है। देवी स्कंदमाता का पुत्र स्कंद युद्ध के देवता माने जाते हैं और यह हमें यह सिखाता है कि हम अपने भीतर के संघर्षों से कैसे जूझ सकते हैं। यह आत्म-संयम, धैर्य, और साहस का प्रतीक है।
स्कंदमाता का एक और प्रतीकात्मक अर्थ है कि वे हमें यह याद दिलाती हैं कि जीवन में शक्ति और ममता दोनों की आवश्यकता होती है। वे एक मां के रूप में हमारी देखभाल करती हैं और एक योद्धा के रूप में हमें साहस और सामर्थ्य प्रदान करती हैं। इसलिए, नवरात्रि के इस दिन, देवी की आराधना करने से साधक को जीवन के सभी संघर्षों को धैर्य और प्रेम से पार करने की शक्ति मिलती है।
नवरात्रि के पांचवे दिन का महत्त्व
नवरात्रि का पंचम दिन आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस दिन की पूजा से साधक को आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है और वे अपने जीवन के उद्देश्य को समझने में सक्षम होते हैं। देवी स्कंदमाता की कृपा से साधक को मानसिक शांति और आंतरिक शक्ति प्राप्त होती है, जो जीवन के हर कठिन समय में सहायक होती है। यह दिन विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो मानसिक तनाव और चिंता का सामना कर रहे होते हैं, क्योंकि देवी की पूजा से उन्हें आंतरिक शांति और संतुलन मिलता है।
पंचम दिन का संबंध स्वाधिष्ठान चक्र से भी माना जाता है, जो मानव शरीर के सात प्रमुख चक्रों में से एक है। स्वाधिष्ठान चक्र को रचनात्मकता और आनंद का केंद्र माना जाता है। जब इस चक्र को सक्रिय किया जाता है, तो व्यक्ति को जीवन में सृजनात्मकता, उत्साह और आत्मविश्वास का अनुभव होता है। देवी स्कंदमाता की आराधना करने से यह चक्र संतुलित होता है और साधक को मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
पूजा विधि और अनुष्ठान
नवरात्रि के पांचवे दिन की पूजा विधि अन्य दिनों की पूजा विधियों के समान होती है, लेकिन इस दिन विशेष रूप से देवी स्कंदमाता की आराधना पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। इस दिन पूजा के लिए विशेष रूप से निम्नलिखित विधि का पालन किया जाता है:
1. **स्नान और शुद्धि**: सबसे पहले, साधक को स्नान कर शुद्ध हो जाना चाहिए। इसके बाद, पूजा स्थल की शुद्धि के लिए गंगाजल का छिड़काव किया जाता है।
2. **दीप जलाना**: पूजा स्थल पर एक दीया जलाया जाता है, जो देवी स्कंदमाता के प्रकाश और आशीर्वाद का प्रतीक होता है।
3. **मंत्र जाप**: देवी स्कंदमाता के विशेष मंत्रों का जाप किया जाता है। उनका प्रमुख मंत्र है:
“`
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः।
“`
इस मंत्र का जाप करने से साधक को देवी की कृपा और आशीर्वाद मिलता है।
4. **फूलों की अर्पणा**: देवी को लाल और पीले फूल विशेष रूप से प्रिय होते हैं, इसलिए उनकी पूजा में इन रंगों के फूल अर्पित किए जाते हैं।
5. **प्रसाद और भोग**: देवी को प्रसाद के रूप में खासतौर पर केले का भोग लगाया जाता है। केले का फल शुद्धता और समृद्धि का प्रतीक है और इसे देवी को अर्पित करने से घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।
6. **आरती**: पूजा के अंत में, देवी की आरती की जाती है और उनके समक्ष दीप प्रज्वलित कर भक्तगण उनकी स्तुति करते हैं। आरती के समय देवी से जीवन में शक्ति, समृद्धि, और शांति की कामना की जाती है।
इस दिन का रंग: पीला
नवरात्रि के पांचवे दिन का रंग विशेष रूप से पीला माना जाता है। पीला रंग उत्साह, सकारात्मकता, और ऊर्जा का प्रतीक है। यह रंग देवी स्कंदमाता के सौम्य और कृपालु स्वरूप को दर्शाता है। इस दिन, भक्तगण पीले वस्त्र पहनकर पूजा करते हैं और देवी से जीवन में खुशहाली और सकारात्मक ऊर्जा की कामना करते हैं।
पंचम दिन की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, देवी पार्वती ने जब भगवान शिव से विवाह किया, तो उनके पुत्र स्कंद (कार्तिकेय) का जन्म हुआ। स्कंद को देवताओं के सेनापति के रूप में नियुक्त किया गया, ताकि वे राक्षसों का संहार कर सकें। देवी पार्वती ने अपने पुत्र के रक्षक रूप में उनकी माँ के रूप में स्कंदमाता का रूप धारण किया। उन्होंने अपने पुत्र को शक्ति और साहस प्रदान किया, जिससे वह युद्ध में विजयी हो सके। इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि माता अपने बच्चों के लिए कितनी महत्वपूर्ण होती हैं और उनका आशीर्वाद कैसे जीवन में सफलता और विजय प्राप्त करने में सहायक होता है।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण
देवी स्कंदमाता की पूजा का आध्यात्मिक महत्त्व गहरा है। यह दिन साधकों के लिए आत्म-ज्ञान प्राप्त करने का एक अवसर प्रदान करता है। देवी स्कंदमाता की कृपा से साधक को जीवन के सभी पहलुओं में संतुलन प्राप्त होता है, चाहे वह मानसिक हो या शारीरिक। यह दिन हमें यह सिखाता है कि जीवन में किसी भी प्रकार की कठिनाई हो, उसे मातृत्व और साहस से ही पार किया जा सकता है।
नवरात्रि का पंचम दिन साधकों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर होता है, जिसमें वे देवी स्कंदमाता की आराधना कर अपने जीवन को नई दिशा दे सकते हैं।