नवरात्रि का पर्व हिन्दू धर्म में विशेष रूप से शक्ति और भक्ति का पर्व माना जाता है, जिसमें देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा होती है। नवरात्रि के छठे दिन देवी कात्यायनी की पूजा की जाती है। 2024 में नवरात्रि का छठा दिन 11 अक्टूबर को मनाया जाएगा। देवी कात्यायनी को मां दुर्गा का छठा रूप माना जाता है, जो समर्पण, शक्ति और विजय का प्रतीक हैं। यह दिन साधकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि देवी कात्यायनी की आराधना से भक्तों को उनके जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है और उन्हें मानसिक शांति और सफलता का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
इस लेख में हम नवरात्रि के छठे दिन की विशेष पूजा विधि, देवी कात्यायनी का स्वरूप, उनके पूजन के लिए विशेष मुहूर्त, और इस दिन की आध्यात्मिक महत्ता को विस्तार से जानेंगे।
देवी कात्यायनी का स्वरूप
नवरात्रि के छठे दिन देवी कात्यायनी की पूजा की जाती है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक मानी जाती हैं। देवी कात्यायनी का नाम उनके ऋषि कात्यायन के नाम पर पड़ा, जिन्होंने कठोर तपस्या कर देवी दुर्गा से वरदान मांगा कि वे उनके घर में पुत्री के रूप में जन्म लें। देवी कात्यायनी का वर्ण सुनहरा है और उनके चार हाथ हैं। उनके एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में कमल पुष्प होता है। अन्य दो हाथ अभय और वरदान की मुद्रा में होते हैं, जो भक्तों को भयमुक्त और धन-धान्य से परिपूर्ण करने का प्रतीक है। देवी का वाहन सिंह है, जो उनके साहस और शक्ति को दर्शाता है।
देवी कात्यायनी का महत्त्व
देवी कात्यायनी को नवदुर्गा के रूपों में सबसे शक्तिशाली और दुष्टों का नाश करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। वे सभी बाधाओं को दूर कर भक्तों को विजय दिलाती हैं। खासकर जो भक्त जीवन में कठिनाईयों का सामना कर रहे होते हैं, उनके लिए देवी कात्यायनी की आराधना से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी कात्यायनी ने ही महिषासुर का वध किया था, जो यह दर्शाता है कि वे दुष्ट शक्तियों के संहार के लिए अवतारित हुई थीं। उनकी पूजा से भक्तों को आत्मिक बल प्राप्त होता है और वे जीवन में किसी भी प्रकार की चुनौती का सामना कर सकते हैं। इस दिन देवी कात्यायनी की पूजा करने से साधक को रोग, शोक, भय और मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है।
देवी कात्यायनी का प्रतीकात्मक महत्त्व
देवी कात्यायनी का रूप हमें यह सिखाता है कि जीवन में शक्ति और समर्पण दोनों का संतुलन आवश्यक है। देवी के चार हाथों में तलवार और कमल का संयोजन यह दर्शाता है कि शक्ति और सौम्यता दोनों का संतुलन जीवन के लिए अनिवार्य है। उनका वाहन सिंह यह बताता है कि हमें जीवन के सभी कष्टों का साहसपूर्वक सामना करना चाहिए। देवी की अभय मुद्रा भक्तों को यह संदेश देती है कि उनके आशीर्वाद से सभी भय दूर हो सकते हैं और भक्त जीवन में सभी प्रकार की चुनौतियों को पार कर सकते हैं।
नवरात्रि के छठे दिन का महत्त्व
नवरात्रि का छठा दिन साधकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इस दिन की पूजा से भक्तों को मानसिक और शारीरिक बल मिलता है। यह दिन आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि देवी कात्यायनी की पूजा से भक्तों के मन का साक्षात्कार होता है और उन्हें जीवन में अपने उद्देश्य का बोध होता है।
देवी कात्यायनी का संबंध आज्ञा चक्र से भी माना जाता है, जो सात प्रमुख चक्रों में से एक है। आज्ञा चक्र को ज्ञान और अंतर्दृष्टि का केंद्र माना जाता है। जब यह चक्र सक्रिय होता है, तो साधक को आत्मज्ञान और गहरी समझ प्राप्त होती है। देवी कात्यायनी की पूजा से यह चक्र संतुलित होता है और साधक को मानसिक शांति और आत्मिक जागृति का अनुभव होता है।
पूजा विधि और अनुष्ठान
नवरात्रि के छठे दिन देवी कात्यायनी की पूजा विधि विशेष रूप से महत्वपूर्ण होती है। इस दिन की पूजा में साधक को पूर्ण भक्ति और समर्पण के साथ देवी की आराधना करनी चाहिए। पूजा विधि निम्नलिखित है:
1. स्नान और शुद्धिकरण**: सबसे पहले, साधक को स्नान कर शुद्ध हो जाना चाहिए। इसके बाद पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध किया जाता है।
2. दीप जलाना: देवी कात्यायनी के समक्ष एक दीया प्रज्वलित करें, जो उनके दिव्य प्रकाश और आशीर्वाद का प्रतीक है।
3. मंत्र जाप: देवी कात्यायनी के मंत्रों का जाप करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। उनका प्रमुख मंत्र है:
“`
ॐ देवी कात्यायन्यै नमः।
“`
इस मंत्र का जाप साधक के लिए विशेष फलदायी होता है और उन्हें देवी की कृपा प्राप्त होती है।
4. फूल और फल अर्पित करना: देवी कात्यायनी को विशेष रूप से लाल फूल प्रिय होते हैं। इस दिन उनकी पूजा में लाल फूल अर्पित करना चाहिए। इसके अलावा, देवी को शहद का भोग लगाना शुभ माना जाता है, क्योंकि शहद समृद्धि और मिठास का प्रतीक होता है।
5. नैवेद्य और भोग: देवी को खासतौर पर शहद और हलवे का भोग लगाया जाता है। यह भोग घर में सुख-समृद्धि और शांति लाने का प्रतीक होता है।
6. आरती: पूजा के अंत में देवी की आरती की जाती है और उनकी स्तुति की जाती है। आरती के समय भक्तों को देवी से जीवन में शांति, सफलता और समृद्धि की कामना करनी चाहिए।
पूजा का शुभ मुहूर्त (2024)
नवरात्रि के छठे दिन की पूजा का शुभ मुहूर्त बहुत महत्वपूर्ण होता है। 2024 में नवरात्रि के छठे दिन, देवी कात्यायनी की पूजा का समय विशेष रूप से निम्नलिखित है:
– अभिजीत मुहूर्त: 11:45 AM से 12:30 PM के बीच
– विजय मुहूर्त: 02:15 PM से 03:00 PM के बीच
– प्रदोष काल: 06:00 PM से 07:30 PM के बीच
इन शुभ मुहूर्तों में देवी कात्यायनी की पूजा करने से भक्तों को विशेष आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। इन समयों में पूजा करने से देवी की कृपा शीघ्र मिलती है और भक्तों को जीवन में सफलता और समृद्धि प्राप्त होती है।
इस दिन का रंग: लाल
नवरात्रि के छठे दिन का रंग लाल माना जाता है। लाल रंग शक्ति, साहस, और ऊर्जा का प्रतीक है। देवी कात्यायनी की पूजा में इस रंग का विशेष महत्व होता है, क्योंकि यह उनके तेजस्वी और साहसी स्वरूप को दर्शाता है। इस दिन भक्तों को लाल वस्त्र धारण कर देवी की आराधना करनी चाहिए, जिससे उन्हें देवी की शक्ति और आशीर्वाद की प्राप्ति हो।
देवी कात्यायनी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि कात्यायन ने कठिन तपस्या की थी, ताकि देवी दुर्गा उनके घर में पुत्री के रूप में जन्म लें। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कात्यायन ऋषि के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। इसके बाद देवी कात्यायनी ने महिषासुर का वध कर देवताओं को उसके आतंक से मुक्त किया। इस कथा से यह सिखने को मिलता है कि जब हम अपने जीवन में कठिनाइयों का सामना करते हैं, तब हमें देवी की शक्ति और कृपा पर विश्वास करना चाहिए।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण
नवरात्रि का छठा दिन साधकों के लिए आध्यात्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। यह दिन साधकों को अपने भीतर की शक्ति और साहस को पहचानने का अवसर देता है। देवी कात्यायनी की आराधना से साधक को आत्मज्ञान प्राप्त होता है और वे अपने जीवन के उद्देश्य को समझने में सक्षम होते हैं।
नवरात्रि का यह दिन हमें यह सिखाता है कि हमें अपने जीवन में हर कठिनाई का सामना साहस और आत्मविश्वास से करना चाहिए। देवी कात्यायनी की कृपा से साधक को अपने जीवन में शांति और संतुलन की प्राप्ति होती है।