संकष्टी चतुर्थी व्रत – 14 जुलाई 2025 (सोमवार)
🌟 प्रस्तावना
संकष्टी चतुर्थी, जिसे संकट चौथ भी कहा जाता है, भगवान श्री गणेश को समर्पित एक विशेष व्रत है। यह व्रत हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है और जब यह व्रत सोमवार को आता है, तो उसका महत्व कई गुना बढ़ जाता है। 14 जुलाई 2025, सोमवार को यह शुभ तिथि पड़ रही है, जिसे विशेष रूप से संकट नाशक, विघ्नहर्ता और सुख-संपत्ति प्रदान करने वाला माना गया है। यह ब्लॉग इस व्रत के धार्मिक, पौराणिक, ज्योतिषीय और आध्यात्मिक महत्व को विस्तार से प्रस्तुत करता है।
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🙏 संकष्टी चतुर्थी का धार्मिक महत्व
भगवान गणेश विघ्नों के नाशक, बुद्धि, विवेक और शुभता के अधिष्ठाता हैं। संकष्टी चतुर्थी के दिन गणपति बप्पा की उपासना से जीवन में आने वाले संकट, बाधाएं और नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती हैं। विशेष रूप से चंद्र दर्शन और चंद्र अर्घ्य का विधान इस दिन अद्वितीय है।
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📜 पौराणिक कथा
प्राचीन काल में एक निर्धन ब्राह्मण महिला ने संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा और पूरी श्रद्धा से पूजा की। उसकी कठिनाईयाँ धीरे-धीरे समाप्त होने लगीं और जीवन में सुख-शांति आने लगी। एक अन्य कथा में भगवान शिव ने माता पार्वती के कहने पर गणेश जी को यह वरदान दिया कि जो भक्त संकष्टी चतुर्थी को उनकी पूजा करेगा, उसके सभी संकट दूर होंगे।
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🕉️ व्रत विधि और पूजन प्रक्रिया
प्रातःकाल:
* प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
* व्रत का संकल्प लें और दिनभर उपवास रखें।
संध्याकाल:
* सूर्यास्त के बाद चंद्रोदय की प्रतीक्षा करें।
* गणपति जी की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक, अगरबत्ती, पुष्प, दूर्वा, मोदक, लड्डू आदि अर्पण करें।
* गणेश मंत्र – “ॐ गं गणपतये नमः” का जाप करें।
* चंद्रमा को जल चढ़ाएं और अर्घ्य दें।
* व्रत कथा का श्रवण या पाठ करें।
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📅 व्रत विशेषताएँ
* उपवास में केवल फलाहार, दूध, मूंगफली, साबूदाना, सिंघाड़े का उपयोग करें।
* चंद्र अर्घ्य के बाद व्रत खोला जाता है।
* बच्चों और वृद्धों को पूजा में सम्मिलित करना शुभ माना जाता है।
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🔭 ज्योतिषीय दृष्टिकोण
* चतुर्थी तिथि चंद्रमा और बुद्धि के कारक मानी जाती है।
* इस दिन गणपति उपासना से चंद्र दोष, राहु-केतु के प्रभाव और मानसिक तनाव कम होते हैं।
* सोमवार को पड़ने वाली संकष्टी विशेष रूप से सोम ग्रह और मन की शुद्धि के लिए श्रेष्ठ है।
ग्रह स्थिति (14 जुलाई 2025):
* चंद्रमा: कुम्भ राशि में — धैर्य और स्थिरता में वृद्धि।
* मंगल: सिंह राशि में — साहस और ऊर्जा में वृद्धि।
* बुध: कर्क राशि में — संवाद कौशल और विवेक में लाभ।
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🌿 स्वास्थ्य लाभ
* उपवास से पाचन प्रणाली को विश्राम मिलता है।
* फलाहार और सात्विक भोजन से शरीर में ऊर्जा और शुद्धता आती है।
* मानसिक एकाग्रता, ध्यान और मंत्र जाप से तनाव कम होता है।
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📿 आध्यात्मिक दृष्टिकोण
* संकष्टी चतुर्थी आत्मशुद्धि, भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है।
* यह व्रत साधक को अपने भीतर के विघ्नों को पहचानकर उन्हें शांत करने की प्रेरणा देता है।
* यह दिन आत्म-अनुशासन, संकल्प शक्ति और ईश्वर समर्पण का श्रेष्ठ अवसर है।
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🪔 विशेष मंत्र
* गणेश गायत्री मंत्र:
“ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि।
तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्॥”
* संकट मोचन गणेश स्तोत्र का पाठ करें।
* गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ विशेष फलदायक होता है।
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🌸 संकष्टी चतुर्थी और महिलाएं
* स्त्रियाँ इस व्रत को विशेष रूप से संतान सुख, परिवार की रक्षा और वैवाहिक सुख के लिए करती हैं।
* विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और परिवार की समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं।
* कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं।
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🌾 दान और पुण्य
* गरीबों को फल, अन्न, वस्त्र और गणेश प्रतिमा दान करना शुभ होता है।
* गौ सेवा, तुलसी जल अर्पण और अनाथ बच्चों को मोदक दान पुण्यकारी होता है।
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📌 निष्कर्ष
**संकष्टी चतुर्थी** केवल एक व्रत नहीं, बल्कि यह आत्मशुद्धि, संयम, और संकटों से उबरने का आध्यात्मिक मार्ग है। 14 जुलाई 2025 को आने वाली यह विशेष सोम संकष्टी चतुर्थी भगवान गणेश की विशेष कृपा पाने का एक दुर्लभ अवसर है। इस दिन श्रद्धा और नियमपूर्वक व्रत एवं पूजा करने से जीवन के सभी संकटों का नाश होता है और शुभता का उदय होता है।
**संकष्टी चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं! गणपति बप्पा मोरया!**🙏
” षष्ठी व्रत – 01 जुलाई 2025 (मंगलवार)
🌕 प्रस्तावना
1 जुलाई 2025 को आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि है, जिसे शास्त्रों में अत्यंत शुभ माना गया है। यह दिन भगवान कार्तिकेय को समर्पित स्कंद षष्ठी व्रत के रूप में मनाया जाता है। विशेष रूप से दक्षिण भारत और कुछ पूर्वी राज्यों में यह व्रत बड़ी श्रद्धा और भक्ति से किया जाता है। यह व्रत न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि ज्योतिष, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी अत्यंत फलदायक माना गया है।
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🔱 स्कंद षष्ठी का पौराणिक महत्व
भगवान कार्तिकेय, जिन्हें स्कंद, मुरुगन, कुमारस्वामी, और सुब्रह्मण्य के नाम से जाना जाता है, भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र हैं। स्कंद षष्ठी का व्रत इस बात की स्मृति है कि कैसे उन्होंने देवताओं की सेना का नेतृत्व करते हुए दानव तारकासुर का वध किया था। यह व्रत बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।
पौराणिक कथा:
तारकासुर नामक राक्षस ने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया था कि केवल शिव का पुत्र ही उसका वध कर सकता है। शिवजी तप में लीन थे और विवाह से विमुख थे। देवी पार्वती ने कठिन तपस्या कर शिव से विवाह किया और कार्तिकेय का जन्म हुआ। बाल्यकाल से ही कार्तिकेय अत्यंत शक्तिशाली और तेजस्वी थे। उन्होंने मात्र छह दिनों में दानव तारकासुर का संहार किया। इसी कारण षष्ठी तिथि को यह व्रत किया जाता है।
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🧘♀️ व्रत और पूजा विधि
सुबह की तैयारी:
* प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करें।
* घर एवं पूजा स्थल को शुद्ध करें।
* भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
पूजन सामग्री:
* पंचामृत, मोर पंख, लाल पुष्प, धूप, दीप, फल, मिष्ठान्न, कपूर, रोली, अक्षत, नारियल।
पूजन विधि:
1. दीप प्रज्वलन करें और “”ॐ स्कंदाय नमः”” मंत्र से ध्यान करें।
2. भगवान को पंचामृत से स्नान कराएँ।
3. मोर पंख अर्पण करें जो कार्तिकेय का वाहन है।
4. प्रसाद में फल, मिश्री, बताशे रखें।
5. कथा वाचन करें (स्कंद षष्ठी की कथा)।
6. आरती करें – “”जय देव जय देव जय कार्तिकेय…””
व्रत नियम:
* इस दिन उपवास या फलाहार करें।
* रात्रि को एक बार फल या दूध ले सकते हैं।
* क्रोध, निंदा, झूठ से बचें।
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🌌 ज्योतिषीय महत्व
षष्ठी तिथि चंद्रमा के प्रभाव में होती है और यह मन एवं भावनाओं से जुड़ी होती है। 2025 में यह तिथि मंगल के प्रभाव से युक्त है, जो कि कार्तिकेय से संबंधित ग्रह है। ऐसे में यह व्रत करने से आत्मबल, साहस, और निर्णय क्षमता में वृद्धि होती है।
ग्रह स्थिति:
* चंद्रमा : सिंह राशि में उच्च का होगा
* मंगल : सिंह में
यह योग विशेष रूप से उन लोगों के लिए शुभ होगा जिनकी कुंडली में चंद्र, मंगल, या षष्ठ भाव कमजोर है। यह व्रत इन दोषों को शांत करता है।
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🧠 स्वास्थ्य और मानसिक लाभ
* व्रत से पाचन तंत्र को विश्राम मिलता है।
* मानसिक रूप से शांति और संतुलन की प्राप्ति होती है।
* ध्यान और मंत्र जाप से मानसिक विकार कम होते हैं।
* आयुर्वेद अनुसार, मोर पंख और मोर चित्र भी वातावरण को रोगमुक्त बनाते हैं।
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📿 आध्यात्मिक दृष्टिकोण
* कार्तिकेय को ध्यान और ब्रह्मचर्य का प्रतीक माना जाता है।
* स्कंद षष्ठी आत्म-संयम, साहस और शुद्धता का उत्सव है।
* साधकों को इस दिन ध्यान, मौन और आत्म-चिंतन करना चाहिए।
* गुरु उपदेशों का स्मरण और निष्ठा इस दिन विशेष लाभकारी होती है।
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🌱 दान-पुण्य का महत्व
व्रत के समापन पर जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, छाता, मोर पंख, और पुस्तकें दान करें। इससे व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है। गौ-सेवा, वृक्षारोपण और जल वितरण जैसे कार्य विशेष पुण्यकारी माने जाते हैं।
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📜 निष्कर्ष
षष्ठी व्रत केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह आत्मिक जागृति, सामाजिक जिम्मेदारी और प्राकृतिक संतुलन की ओर एक प्रेरणादायी कदम है। 01 जुलाई 2025 को आने वाली यह तिथि उन सभी के लिए एक सुंदर अवसर है जो अपने जीवन में संयम, साहस और आध्यात्मिक ऊर्जा को जाग्रत करना चाहते हैं।
“”शिवपुत्र स्कंद की कृपा से जीवन में जय, तेज और विवेक का उदय हो।””
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🙏 **शुभ षष्ठी व्रत की हार्दिक शुभकामनाएं!**🙏
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